सोमवार, 5 अक्तूबर 2009

बिन पानी सब सून नहीं

प्राचीन काल के एक महाकवि ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात लोगोँ को समझाई थी कि हमेँ पानी रखना चाहिए क्योँकि बिन पानी सब सून होता है । अब उस काल मेँ घरोँ मेँ या सार्वजनिक स्थलोँ पर नल या हेण्ड पम्प तो होते नहीँ थे कि जब जी मेँ आए पानी का उपयोग कर लिया जाए वरन महज मिट्टी के धडे, मटके या पीतल या किसी अन्य धातु के बर्तन ही होते थे जिनकी जल भँडारण क्षमता भी कम ही होती थी जाहिर है बहुत दूर से या कहीँ कहीँ तो मीलोँ दूर चल कर कुओँ या तालाबोँ से ही पानी लाना पडता होगा जो बडा कष्टकारी कार्य होता होगा साथ ही पानी लाने के समय महिलाओँ को लगातार ये खतरा भी बना रहता था कि कहीँ पनघट पर उन्हेँ कोई नन्दलाल छेड न जाए अत: हो सकता है इस सिद्धांत के पीछे सँभवत: उनका यही आशय होगा कि हमेँ पानी की बचत करनी चाहिए जिससे उसकी आवश्यकता होने पर हमेँ भटकना न पढ़ेगा वर्ना उसके न होने से सब कुछ सून हो सकता है ।

उनकी इसी बात का कुछ पढे लिखे और अपने को समझदार समझने वाले लोग अपने ही ढँग से ही उसका अर्थ निकालने लग गए । उनके अनुसार यहां पानी का अर्थ पानी न हो कर अपना मान, सम्मान, इज्जत् या आबरू है जिसको बचा कर न रखने पर सब कुछ मटियामेट हो सकता है किंतु आधुनिक युग के एक अन्य महाकवि ने पानी के बारे मेँ एक और महत्वपूर्ण बात लोगोँ को बताई कि उसका रँग ऍसा होता है कि उसे जिसमेँ मिला दो वह उस जैसा ही लगने लगता है । इस खोज से लोगोँ को यह देखकर अत्यंत् प्रसन्नता हुई कि वाकई यह पानी तो अत्यंत चमत्कारी चीज़ है इसे बचा कर रखना चाहिए । इसे तो दूध मेँ मिला कर कभी भी उसका दूध बनाया जा सकता है और बनाया भी जा रहा है । पेट्रोल, मिट्टी के तेल की मात्रा भी बढाई जा सकती है और बढाई जा भी रही है । जो समझदार व्यक्ति इस पानी को इज्ज़त या मान सम्मान के अर्थोँ मेँ ले रहे थे जब उन्होँने भी इस प्रयोग करने का मानस बनाया तो और कोई चीज़ न पाकर उन्होँने इसे धूल मेँ ही मिला दिया और उसका असर देखना चाहा और उन्होँने पाया कि पानी तो मिट्टी मेँ ही मिल गया उनकी इज़्जत तो धूल मेँ ही मिल गई । लेकिन अब समय बदल गया है अब अधिकाँश जगहोँ पर पानी का प्रबन्ध होने लग गया है भले ही उसकी एक बोतल की कीमत 15 रुपए क्योँ न हो । जिस चीज़ को कभी प्यासे को पिलाया जाना पुण्य का कार्य समझा जाता था अब उस पुण्य के 15-20 रुपए खर्च करने पडते है । चलिए यह सँतोष तो है कि पानी आखिर मिल तो रहा है परंतु यह बात भी सत्य है कि हमेँ पानी लगातार मिलता रहे इसके लिए दुनिया को वर्षा पर ही निर्भर रहना पडता है और वर्षा कोई ऍसी वैसी तो है नही कि उसका जब मन जब जहाँ आए बरस जाए उसका क्या भरोसा ? वह भी प्रकृति के कुछ नियमोँ से बँधीँ हुई है जिन नियमोँ का पालन करने मेँ मनुष्य सदा ही कोताही बरतता आ रहा है इस लिए मौसम विभाग की अनेक भविष्यवाणियोँ के वावज़ूद भी कुछ सालोँ से आर्थिक मन्दी की तरह वारिश मेँ भी मन्दी का दौर आ ही जाता है । आज जब पूरे देश मेँ वारिश की मन्दी के कारण पानी का सँकट बना हुआ है हमारे लिए यह वरदान है कि हमारे शहर के बीचोँबीच चम्बल नदी बहती है वैसे वह बहती तो शहर से दूर ही थी किंतु शहर वालोँ को यह कतई गवारा नहीँ हुआ कि वह अलग थलग बहे इसलिए उसके चारोँ तरफ मकान बना कर उसे बीच् मेँ ले आए । जिसका परिणाम यह हुआ कि हमारे यहाँ पानी की कमी नहीँ रही । नल चौबीसोँ घंटे अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराते रहे कभी भी दफ्तर के बाबुओँ की तरह चाय पीने के बहाने अपनी सीट से गायब नहीँ हुए और् हम पानी का जम कर उपयोग या दुरुपयोग करते रहे । चुल्लू भर पानी मेँ डुब कर मरने वालोँ को जो दिक्कतेँ आतीँ थीँ वह भी दूर हो गई तथा उन्हेँ भी विशेष सुविधा प्राप्त हो गई । वैसे देखा जाए तो पानी की कमी होना भी मानव समाज के लिए बहुत् लाभदायक है । खुशनसीब है वे लोग या बस्तियाँ जिनमेँ पानी नहीँ आता या जहाँ पानी की किल्लत है । आइए ज़रा गौर करेँ की पानी की कमी से हमेँ क्या क्या लाभ है : - नलोँ मेँ पानी आने की प्रतीक्षा मेँ लोग रात रात भर जाग जाग कर नलोँ को देखते रहेँगे जिससे उनके घरोँ की रखवाली होगी तथा चोरियोँ तथा अपराधोँ मे कमी होगी। - घरोँ मेँ पानी न आने के कारण लोग सडक के हेंडपम्पोँ या कुओँ तालाबोँ से पानी बाल्टियोँ मेँ भर भर कर लाएँगे जिससे उनका नियमित व्यायाम होगा जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होगा । - पानी की कमी से घरोँ एवँ सडक की नालियोँ मेँ पानी इकट्ठा नहीँ होगा जिससे उसमेँ मच्छर या अन्य कीटाणु पैदा नहीँ होँगे और मलेरिया , डेगू, स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियाँ नहीँ फैलेँगी। - पानी न आने के कारण गर्मी मेँ लोग शीतल पेय, मिनरल वाटर, शर्बत आदि का प्रयोग अधिक करेँगे जिससे पानी की मशीन की टँकियाँ, मटके, घडे वालोँ को अधिक कार्य मिलेगा और उनकी बिक्री अधिक होगी। इस प्रकार लघु उद्योगोँ को प्रोत्साहन मिलेगा । - पानी की कमी से घरोँ मेँ कूलर आदि बन्द पडे रहेँगे जिससे बिजली की बचत होगी, उसकी खपत मेँ कमी होगी तथा बिजली के बिल कम आएँगे । बचत की गई बिजली का उपयोग अन्यत्र जगहोँ पर किया जा सकेगा । - अभी तो पानी अधिक आने के कारण लोग उसका दुरुपयोग करते रहे हैँ पानी की कमी के कारण लोगोँ मेँ उसकी बचत करने की आदत पडेगी । अभी तो प्रत्येक महिला या पुरुष तीन तीन चार चार बाल्टियाँ से या नल और शावर के नीचे बैठ कर नहाते है पानी की कमी से घर के सभी सदस्य एक बाल्टी पानी से ही नहा लिया करेँगे । - पानी की कमी से व्याह शादियोँ या समारोहोँ मेँ की भव्यता मेँ भी कमी आएगी जिससे फिजूलखर्ची कम होगी तथा बरतन आदि साफ करने की मुसीबत से बचने के लिए ‘उपयोग करो और फेँक दो’ वाले पत्तल दोने गिलासोँ का उपयोग अधिक होगा जिससे उनकी बिक्री बढेगी । - बरसात की वजह् से सडकेँ खराब नहीँ होँगी और उनकी मरम्मत का पैसा बचेगा जो दूसरी लाभकारी योजनाओँ मेँ लगाया जा सकेगा और आवागमन मेँ सुविधा बनी रहेगी। - पानी की कमी से होली के त्योहार पर भी लोग रँगोँ की जगह सूखी गुलाल की होली ही खेलना पसँद करेँगे जिसके लिए बहुत सी सँस्थाएँ अनुरोध करतीँ हैँ । इस प्रकार हम देखते हैँ कि बिन पानी सब सून नहीँ है । अभी कुछ देशोँ मेँ आई सुनामी से यह बात भी सिद्ध होती है कि बिन पानी चाहे सून हो या नहीँ अधिक पानी आ जाने से भी सब सून हो जाता है । आए दिन समाचार पत्रोँ मेँ शहर के अनेक क्षैत्रोँ मेँ पानी न आने की शिकायत का समाचार प्रकाशित होना इस लाभकारी योजना की दिशा मेँ उठाया गया महत्वपूर्ण कदम प्रतीत हो रहा है । क्षमा करेँ अब मैँ चलता हूँ बन्द पडे नल मेँ से पानी के टपकने की आवाज़ आ रही है क्योँकि जल है तभी जीवन है।