हे कथित जन सेवक !
तुम्हारी प्रतीक्षा में नगर की टूटी हुई सड़कों से धूल उड़ उड़ कर तुम्हारे मुख मण्ड्ल पर अबीर गुलाल की भांति लिपटने को व्याकुल हो रही है । सड़कों के किनारे लगे हुए हैण्ड पम्पों के आँसू तुम्हारी याद में रो रो कर सूख चुके हैं । सार्वजनिक नल दिन रात बहते हुए तुम्हारे आने की राह को पखारने में लगे हुए हैं । लेम्प पोस्ट पर लगीं बिजली की बत्तियां तुम्हारे विरह में दिन भर जलतीं रहतीं हैं तथा रात भर बुझी बुझी रहतीं हैं । इसलिए एक बार आजा आजा ।
हे लीप इयर की फ़रवरी माह की २९ तारीख जैसी प्रकृति वाले पुरुष !
पॊलीथीन की थैलियां नालियों में से अपना सिर बाहर निकाल निकाल कर तुम्हें निहारने के लिए दिन रात टकटकी बाधें पडी़ रहतीं हैं । कचरे के ढेर भी तुम्हारे स्वागत में जगह जगह किसी दल के कार्यकर्ताओं की तरह इकट्ठे हो रहे हैं । तुम्हारी एक झलक पाने के लिए आवारा पशु मुख्य सड़कों पर तुम्हारी राहों में पलक पांवडे बिछाए हुए तथा आने जाने वालों की परवाह न करते हुए विचरण करते रहते हैं । इसलिए एक बार आजा आजा ।
हे विपक्षी दलों की आँखों के काँटे !
ये माना कि चुनाव अभी दूर है और तुम्हारा अभी आना परम्परा के विपरीत होगा लेकिन एक नई परम्परा के निर्वाह के लिए तथा दूसरों के सामने एक उदाहरण बनने के लिए ही एक बार आजा अन्यथा कहीं ऐसा न तू जब आए तो इतनी देर हो जाए कि फिर लोगों के क्रोध के कारण तू कभी भी वापस आने के लायक ही न रहे । इसलिए एक बार आजा, आजा, आजा ।
2 टिप्पणियां:
आपका बहु आयामी व्यक्तित्व पसंद आया.
Bahut khub kya bat he
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