शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

अतिथि दुष्टौ भव

अतिथियों ने षडयंत्र रचकर समाज में एक अफ़वाह बड़े अच्छे तरीके से फैला रखी है कि ’अतिथि देवो भव’ होता है । वे कहीं भी अतिथि बनने से पूर्व यह खतरा मोल लेना नहीं चाहते हैं कि उनका मेज़बान द्वारा स्वागत सत्कार ढ़ंग से किया जाएगा भी, या नहीं । नास्तिक से नास्तिक व्यक्ति भी एक बार तो देवता के सामने नतमस्तक हो ही जाता है । यदि यह कह दिया जाता कि अतिथि तो साधारण मनुष्य ही होता है तब तो जो व्यवहार देवताओं के साथ होना चाहिए उसके मुकाबले में साधारण मनुष्य के साथ वैसा ही व्यवहार होगा इसमें तो संशय ही बना रहता है इसलिए अच्छा यही है कि देवता ही बन जाया जाए । अब यदि मेज़बान देवता समझकर स्वागत करता है तब तो क्या कहना और यदि व्यवहार ठीक नहीं करता है तो अतिथि का क्या गया अपमान तो देवताओं का ही हुआ तथा मेज़बान स्वयं ही पाप का भागीदार बना ।
अतिथि भी दो प्रकार के होते है । एक तो आपके घर आते है, थोडी देर बैठते है चाय पानी पीते हैं और चल देते है । ऐसे अतिथियों से ज़्यादा परेशानी नहीं होती है लेकिन दूसरी तरह के अतिथि तो पूरे साज़ो-सामान और जच्चा बच्चा के साथ ही आते है वे सिर्फ़ चाय पानी से टरकने वाले नहीं होते । वैसे चाय का आविष्कार करने वाले ने भी क्या खूब चीज़ बनाई है , आज के युग में इस पेय को इतना महत्वपूर्ण बना दिया गया है कि पूछिए ही मत । आप किसी भी दफ़्तर में चले जाइए जिस सीट पर भी कोई कर्मचारी नदारद मिले समझ जाइए अवश्य वह चाय पीने गया होगा । आप किसी के घर चले जाइए उसकी श्रीमती जी आप को चाय पीने पर विवश कर ही देंगी । आप मना भी करे तब भी वे अपनी कार्य कुशलता, चपलता तथा श्रेष्ठ पाक कला विशेषज्ञ का परिचय यह कह कर अवश्य देंगी कि ’बस अभी दो मिनट में बन जाएगी’ जब कि उनके ये दो मिनट दस मिनट से कम नहीं होते । आपने चाय पीना प्रारम्भ ही किया है कि अगला प्रश्न फ़िर सामने आ कर खडा हो जाता है कि ’चाय ठीक तो बनी है न ! शक्कर तो कम नहीं है ? आप को शक्कर कम लग रही है चाय का स्वाद आपको बहुत ही बे स्वाद लग रहा है आप उनसे थोडी सी शक्कर की माँग करने की सोच् भी लेते है लेकिन ऐसे ही वक्त में आप का मन आपको धिक्कारने लगता है कि वास्तविकता प्रगट करके आप अतिथि के स्वागत की अपनी संस्कृति की प्राचीन परम्परा का निर्वाह कर अपनी प्रशंषा के दो शब्द सुनने को आतुर एक गृहणी की आकांक्षा को पल में ही क्या छिन्न भिन्न कर देंगे ? क्या आपके मुख से निकले एक शब्द हाँ या न उसको पाक कला परीक्षा में असक्षम घोषित कर देंगे ?, क्या थोडी सी शक्कर की माँग करते ही आप उसकी नज़रोँ मेँ दिल तोडने वाले जादूगर नहीँ बन जाएँगे और ऐसे ही समय में आप उस ब्रह्म वाक्य को कि यदि ‘सत्य कडवा हो तथा उससे किसी का अहित होता तो उसे उजागर नही करना चाहिए’, याद करके असत्य जो हितकारी है बोल देते है कि ’नहीं बहुत अच्छी बनी है’ । उस समय उसके चेहरे पर आए प्रसन्नता के भावों का वर्णन तो कवि कालिदास भी नहीं कर सकते थे । आपने अपने इस कार्य से एक तीर से दो निशाने लगा लिए थे । एक तो किसी की प्रशंषा कर के उसका दिल जीत लिया था और दूसरा आपने अपने इस दोस्त के घर अगली बार आने पर चाय के साथ साथ कुछ पकोडे, नमकीन या बिस्किट भी परोसे जाएंगे इस आशा को भी बलबती बना दिया था ।
मुझे लग रहा है कि मैं विषय परिवर्तन कर गया ,अतिथि की बात करते करते चाय और शक्कर् पर अपना ध्यान केन्द्रित कर गया । ऐसा अधिकांश बड़े लेखक भी कर जाते है । वे कभी सरल रेखा में नहीं चलते हमेशा लम्बे मार्ग पर चल कर ही मुख्य विषय पर वापस आते है । मेरी भी गिनती यदि उन लोगों में होने लगे तो क्या बुराई है ?
जैसा कि अतिथि शब्द से ही प्रगट होता है अतिथि के आने और जाने की कोई तिथि नहीँ होती है । इस श्रेणी के प्राणियोँ की अनेक विशेषताएँ होतीँ हैँ । ये लोग देश मेँ पर्यटन व्यवसाय को बढावा देने के शौकीन होते है इसलिए शहर के दर्शनीय स्थलोँ पर आपको ले जाने के लिए अनुरोध अवश्य करते है तथा आपको उनके इस पुनीत कार्य को सम्पन्न कराने मेँ तन मन और धन से सहयोग करना पडता है । ये लोग अच्छे खाने पीने के भी शौकीन होते है तथा अपने स्वयँ के घर मेँ प्रतिदिन खाने वाले साधारण खाने की जगह देवो भव होते ही स्वादिष्ट पकवान, मिष्ठान आदि को मेजवान द्वारा घर मेँ या बाहर होटलोँ मेँ खिलाए जाने पर भी परहेज नहीँ करते क्योँकि देवताओँ की श्रेणी मेँ आने के बाद् मात्र दाल चावल खाना क्या शोभा देगा । ये लोग अतिथि बनने के बाद अच्छे कपडे पहनने के तथा खरीदारी के भी शौकीन होते है एवँ अपने घर जाने पर अतिथि देवो से वापस मनुष्य बनने पर पुन: पुराने कपडे तथा साधारण खान पान प्रारम्भ कर देते है तथा देवता बनने पर गर्व नहीँ करते हैँ ।
कुछ वर्षों पूर्व तक हमारे शहर कोटा में अतिथि सत्कार की श्रेष्ट परम्परा थी । कोई भी किसी दूसरे शहर से हमारे शहर में आता तो मेज़बान उनके आगे पलक पाँवडे बिछा दिया करते थे और यदि पलक पावड़े बिछाने लायक न हों तो पलंग, फ़िर मंगाई जाती थी कोटा की कचौरी और यदि कुछ महिलाएं भी साथ हों तो दिखाने ले जाते थे कोटा साडी का बाज़ार । उसका एक लाभ यह होता था कि जब देवी समान भाभी जी अपने लिए साड़ियाँ पसन्द करतीं थीं तो मेजबान का भी मन हो जाता था और वो भी इस सेल में अपना योगदान दे दिया करतीं थीं क्योंकि कोई महिला साडी की दुकान से खाली हाथ वापस नहीं आ सकती।
अब जब से यह शहर शिक्षानगरी बना है और यहाँ के कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों ने विभिन्न परीक्षाओं में आशातीत सफ़लता अर्जित कीं हैं इस शहर में अतिथियों की संख्या में तो बृद्धि हो गई किन्तु अतिथि सत्कार में कमी आ गई । आप अपने किसी रिश्तेदार के अतिथि बनने के लिए कोटा से बाहर किसी दूसरे शहर में जाइए आप के रिश्तेदार के पडौसियों को यह सूचना मिलते ही कि आप कोटा से आए हैं वे आप से मिलने चले आएंगे और फिर होगी आप से कोटा शहर के कोचिंग संस्थानों की पूछ्ताछ । आप भी एक कोचिंग संस्थान विशेषज्ञ की भाँति सब को बढ़ चढ़ कर सूचनाएं प्रदान करते रहते हैं । ’हम सोच रहे हैं कि अपने बेटे तनुज को भी आपके कोटा में कोचिंग के लिए भिजवा दिया जाए’। कोई तनुज को तो कोई अनुज को, कोई बबली को तो कोई रश्मि को, सभी उसे आपके शहर में भिजवाने को, शहर की जनसँख्या बढाकर उसे महानगर बनाने की श्रेणी मेँ लाने को और आप के अतिथि बनने को आतुर बैठे हैं ।
" अजी सुनो जी ! भाईसाहब का फोन नम्बर ले लीजिए हम कोटा आएंगे तो आप को ही तकलीफ़ देंगे, और तो वहाँ हम किसी को जानते नहीं । उस समय तो आप खुशी खुशी उन्हें अपना फोन नम्बर दे देते है किन्तु थोडे दिनों के बाद ही जब वे आपके नगर में आकर आपसे सहयोग की कामना करते हैं तो आपका बहुत सा समय उनके साथ कोचिंग संस्थान, किराए के मकान या हॊस्टल, या खाने के मैस की तलाश में गुज़र जाता है। उस समय यह महसूस होता है कि कभी कभी देवताओं की संगत भी भारी पड़ सकती है और अतिथि चाहे कुछ भी हो सकता है ’देवो भव’ तो कतई नहीं ।
चलते चलते आपको एक सलाह दिए देता हूँ । यदि आपके सामने भी कभी ऐसी नौबत आए तो पहले तो इस बात से साफ़ मुकर जाइए कि आपकी किसी कोचिंग संस्थान में थोडी भी बहुत पहचान है दूसरे कभी उनको अपना लैण्ड लाइन फोन नम्बर मत दीजिए देना ही है तो मोबाइल नम्बर ही दें कम से कम आप उनको मोबाइल पर यह तो कह सकते हैं कि आप शहर से बाहर है वे कौन सा आपके मोबाइल की कॊल डिटेल या पोज़ीशन निकलवाएंगे ।

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

Me to apka fan ho gaya ye mera whats app no. He kabhi moka mile to yad kar lijiyega

7058602662