सोमवार, 21 मार्च 2011

मानव जीवन मेँ पाजामे के नाडे की भूमिका


जिस प्रकार मौसम मेँ जाडे का, जानवरोँ को रखने के लिए बाडे का और रेल बजट मेँ माल भाडे का महत्व है वही महत्व हमारे जीवन मेँ पाजामे के नाडे का है । इतिहास साक्षी है कि जब जब भी मनुष्य जाति पर या अपने देश पर कोई सँकट आया है लोगोँ ने उस सँकट का मुकाबला करने के लिए अपनी कमर कस ली और उसी समय लोगोँ ने नाडे के अमूल्य सहयोग को पहचाना क्योकि बिना नाडे के कमर कसी ही नहीँ जा सकती थी । अत: यह कहना अतिश्योक्ति नहीँ होगी की स्वतँत्रता सँग्राम या अन्य युद्ध, नाडे के योगदान के कारण ही लडे जा सके थे । मनुष्य द्वारा इस महत्वपूर्ण वस्तु को बिलकुल साधारण तथा तुच्छ समझे जाने के बावज़ूद भी यह मानव जाति की इज़्ज़त तथा विशेष रूप से महिलाओँ के सम्मान की रक्षा करने के लिए दिन रात बिना किसी लालच के अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करने को तत्पर रहता है ।
हिन्दी साहित्य मेँ ‘कमर कसना’ मुहाबरे का अर्थ यही होता है कि अब तुम किसी युद्ध या महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए तैयार हो जाओ अर्थात अपने पाजामे का नाडा ठीक प्रकार से बाँध लो कहीँ ऐसा न हो कि युद्ध मेँ तलवार चलाते हुए कमर को भलीभाँति कसे न जाने के कारण तुम्हारा पजामा नीचे खिसकने लगे उस स्थिति मेँ तुम तलवार् सँभालोगे या पाजामा और इसी उधेडबुन मेँ तुम्हेँ पराजय का मुँह भी देखना पड सकता है सँभवत:इसीलिए यह कहावत ईज़ाद हुई होगी ।
पुराने समय मेँ नाडे का निर्माण पाजामे के कपडे की बची खुची कतरनोँ से ही किया जाता था इस प्रकार अनुपयोगी वस्तुओँ से उपयोगी वस्तुओँ के निर्माण की परिपाटी नाडे ने ही डाली है । उस समय पाजामेँ के साथ मैचिँग नाडा देने की परम्परा थी जो कालांतर मेँ लुप्त सी होती चली गई एवँ अब पाजामे बनवाने वाले को उसकी व्यवस्था स्वयँ के स्तर पर ही करनी पडती है ।
नाडे के आकार प्रकार एवँ उसके गुणोँ के वारे मेँ अलग अलग मत हैँ । इसकी लम्बाई परिस्थितियोँ के अनुसार परिवर्तित होती रहती है तथा यह इस बात पर निर्भर करती है कि उसके द्वारा जिस कमर को कसना है उसकी परिधि कितनी है । कमर की परिधि से लगभग डेढ से दो गुने लम्बे नाडे आदर्श नाडे की श्रेणी मेँ माने जाते हैँ । इससे अधिक लम्बे नाडे मेँ यह ख़तरा बना रहता है कि कमर को कसने के पश्चात वे सामने की ओर लटकते रह सकते है जिसे मानव समाज मेँ मूर्खता की निशानी समझा जाता है तथा व्यक्ति के अत्यधिक बुद्धिमान होने के उपरांत भी उसे बुद्धिहीन समझा जा सकता है इसके विपरीत् छोटे नाडोँ का उसके लिए प्रस्तावित मार्ग पर खो जाने का खतरा बना रहता है। नाडे को पाजामे मेँ डालना एक बहुत ही कठिन कार्य समझा जाता है तथा प्रत्येक् मनुष्य यह समझता है कि यह कार्य तो जिस तरह खाना बनाने, कपडे धोने, सफाई करने आदि कार्य महिलाओँ के द्वारा सम्पन्न किए जाते हैँ पजामा मेँ नाडा डालना भी उनके ही अधिकार क्षैत्र का कार्य है लेकिन यदा कदा पुरुषोँ द्वारा इस कार्य को सम्पन्न करने के प्रमाण भी पाए जाते हैँ । महिलाएँ इस कार्य मेँ अक्सर सेफ्टी पिन या जूडे की पिन का इस्तेमाल करतीँ है वही पुरुष इसके लिए कलम या पेन उपयोग मेँ लाते हैँ अर्थात ‘ कलम तू उनकी जय बोल’ के अतिरिक्त भी वह समाज मेँ अन्य महत्वपूर्ण कार्योँ मेँ भी प्रयोग मेँ लाई जा सकती है ।
समाज के विभिन्न वर्गोँ से जब पजामे मेँ नाडे की भूमिका के वारे मेँ उनके विचार आमँत्रित किए गए तो एक मँत्री महोदय का मत था कि पजामे मेँ नाडा सत्ता पक्ष की तरह होता है जिसके सहयोगियोँ मेँ अर्थात दोनोँ छोरोँ मेँ समान सँतुलन बनाए रखने की आवश्यकता होती है तभी गठबन्धन ठीक से हो पाता है । यदि एक पक्ष को ज़्यादा ढील दे दी जाए तो दूसरा पक्ष समर्थन खीँच कर भूमिगत हो सकता है । गठबन्धन मजबूत नहीँ होने पर पाजामा रूपी सरकार के गिरने का खतरा बना रहता है । एक साइँटिस्ट का मत था कि जब किसी पेन द्वारा पाजामे मेँ नाडे डालने की प्रक्रिया अपनाई जाती है तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे कोई रॉकेट पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा हो एवँ उसके पीछे नाडा रूपी धुआँ निकल रहा हो ।
एक और सिविल अभियँता इस प्रक्रिया की तुलना मेट्रो ट्रैन से करते है जिसमेँ पेन रूपी इँजन नाडे रूपी डिब्बोँ को एक सुरँग के अन्दर से ले जाता है ।
पाजामे के साथ ही साथ नाडे के अन्य क्षैत्रोँ मेँ भी उपयोग मसलन चड्डियोँ, पेटीकोटोँ तथा सलवारोँ मेँ भी किया जाता है अर्थात इसका कार्यक्षैत्र सीमित नहीँ है । आपात्काल मेँ यदि यात्रा करते हुए आप के किसी बैग का हेंडल या ज़िप टूट जाए तो उस समय नाडा सँकटमोचन बनकर उसके स्थान पर अपनी सेवाएँ देने को हमेशा तैयार रहता है । आवश्यकता होने पर इसे कभी कभी कपडे सुखाने या सामान बाँधने के उपयोग मेँ लेने के भी प्रमाण पाए गए हैँ। छोटे बच्चोँ को भी इससे बहुत लगाव है तथा वे अपनी खिलौने की मोटर गाडी को इससे बाँधकर तथा खीँच कर ही आगे चलाते है अत: इसका कार्यक्षैत्र बहुआयामी है। राजनीति से जुडे हुए लोग, साहित्यकार, शायर, जो कुर्ता पाजामा वेशभूषा को अधिक प्राथमिकता देते है नाडे के योगदान को नहीँ भुला सकते हैँ । कुछ दिनोँ से नाडे के साथ न्याय नहीँ हो रहा है तथा वैश्वीकरण के दौर मेँ नाडे का स्थान इलास्टिक या चमडॆ के बेल्ट लेते जा रहे है । लोग अपनी सँस्कृति एवँ परम्पराएँ भूलते जा रहे है तथा दूसरे तरीके आजमाते जा रहे है जो अधिक लम्बे समय तक कारगर सिद्ध नहीँ होते । जिस प्रकार लोग किसी खूबसूरत इमारत की सुन्दरता निहारते है पर उस इमारत मेँ दबे नीँव के पत्थर को याद नहीँ रखते उसी प्रकार का व्यवहार नाडे के साथ भी किया जाता है । कोई भी उसको प्रदर्शित नहीँ करना चाहता है और यदि कभी वह अपने आप को प्रकाश मेँ लाना भी चाहे तो कुर्ते से उसे ढक दिया जाता है । नाडे को बस इसी बात का दु:ख है । लेकिन इस बात मेँ कोई सँशय नहीँ है कि नाडा है तभी हमारी आबरू बची हुई है ।

1 टिप्पणी:

वन्दना ने कहा…

शरद जी सादर नमन
आपकी रचनाएं पढ़ना सुखद लगा और नेट के माध्यम से पाठकों को लाभ मिला बहुत भुत आभार