शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

विकास का रोग

जिस तरह गर्मी या बरसात का मौसम आते ही बहुत-सी बीमारियॉं भी फैलने लगती है पिछले दिनों चुनाव का मौसम आते ही कुछ लोगों को एक नई बीमारी लग गई। वे मिलते तथा कुछ बडबडाने लगते थे। यदि उनकी बातों पर ध्यान दिया जाए जो आम तौर पर लोग नहीं देते हैं तो उनकी पूरी बात में मुहल्ले का विकास¸ गाँव का विकास¸ शहर का विकास¸ राज्य का विकास¸ देश का विकास जैसे शब्द सुनाई देने लगते थे। इस विकास नामक बीमारी ने छुटभैए से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक को अपनी गिरफ़्त में ले लिया था।इस बीमारी से ग्रसित एक मरीज़ से जब हमने पूछा कि आपको ये बीमारी कैसे लगी आप तो ठीक-ठाक थे । वे बोले ये मुझे मेरी पार्टी हाई कमान से लगी है मैं तो अच्छा भला जीवन व्यतीत कर रहा था कि उनका आदेश आया कि तुम अभी तक क्या कर रहे हो उठो और सब का विकास करो । मैं भी सोचने लगा कि अभी तक मैं अपना ही विकास कर रहा था जबकि सबके विकास में ही अपना विकास है तभी से मेरे सारे बदन में विकास की झुरझुरी चलना शुरू हो गई है ।
इस बीमारी के और क्या क्या लक्षण हैं ’।
रात में ठीक से नींद नहीं आती । सुबह उठते ही नहा धोकर झक्क सफ़ेद कुर्ता पाज़ामा या गेरूए वस्त्र पहनने का मन करता है। दोनों हाथों की हथेलियाँ आपस में जुड जातीं हैं तथा हरेक ऐरा गैरा नत्थू खैरा अपना माई बाप प्रतीत होने लगता है। सबको अपने दॉँत दिखाने का मन करता है तथा विकास विकास का जाप करने की इच्छा होती है। घर के बाहर की ठीक-ठाक सड़क के छोटे-छोटे गडढे भी बडे बडे प्रतीत होने लगते है । चारों ओर गन्दगी पसरी दिखाई देती है। नालियों को देख कर लगता है कि उनकी सालों से सफ़ाई नहीं हुई है। चारों तरफ़ पैसा ही पैसा दिखने लगता है । इसके अलावा इस बीमारी से ग्रसित अन्य मरीजो की बुराई करने में प्रसन्नता महसूस होती है । सब लोगों से ये पूछने का मन करता है कि ‘यहॉ जो पहले की सरकार थी उन्होंने विकास के नाम पर क्या किया’ क्योंकि यही एक ऐसा प्रश्न है जिसका जवाब कोई भी नहीं दे पाता है । अब लोगों को याद तो रहता नहीं है कि कौन सा विकास किसने करवाया । मैंने पूछा आप किस चीज़ का विकास करेंगे ? वे बोले सबसे पहले पेयजल की समस्या का निदान करेंगे जिससे नलों में पानी चौबीसों घन्टे आएगा ।
लेकिन पानी तो अभी भी चौबीसों घन्टे आ रहा है’ ।
‘हम छत्तीस घन्टे पानी देंगे’ । ‘लेकिन एक दिन में तो चौबीस घन्टे ही होते है फिर छत्तीस घन्टे कैसे पानी आएगा’ ?

मैनें फिर शंका ज़ाहिर की । ‘छत्तीस घन्टे के बाद हम पानी बन्द करवा देंगे फिर हर छत्तीस घन्टों बाद कुछ घन्टों का ब्रेक। आख़िर सभी जगह तो बीच में ब्रेक होता है कि नहीं ‘? यही तरीक़ा हम अन्य क्ष्रैत्रों में भी अपनाएँगे जैसे बिजली अडतालीस घन्टे तक दी जाएगी । और क्या क्या करेंगे ? सड़कों की मरम्मत करवाएँगे । ‘लेकिन यहॉ तो सड़कें भी बहुत अच्छी है । ‘वो तो ठीक है पर अगर सड़कों पर काम नहीं चलेगा तो ये कैसे मालूम पडेगा कि विकास हो रहा है । विकास होते हुए दिखना भी तो चाहिए’ । ’नदियों पर पुल बनवाएँगे’ । ‘पर यहॉ नदी भी तो नहीं है’ । जहॉ होगी वहीं बनवा देंगे । एक दूसरे विकासग्रत रोगी से भी हमने पूछा कि ‘आप चुनाव में किस लिए खड़े हुए हैं ? ‘विकास के लिए’ । ‘विकास के लिए आप क्या क्या करेंग’ ? वे बोले हम तो हमेशा से ही विकास के बारे में ही सोचते आ रहे है । हम पक्के मकान बनाएँगे¸ आवागमन के साधन बेहतर करेंगे¸ उच्च शिक्षा का प्रबंध करेंगे¸ अच्छी नौकरी मिले¸ आय में वृद्वि हो¸ रहन सहन के स्तर में सुधार हो इसके लिए प्रयास करेंगे । ‘लेकिन आप इतना सारा काम कैसे करेंगे’ । उन्होंने जबाव दिया ‘ अब विकास हमारा एक ही तो इकलौता बेटा है उसके लिए नहीं करेंगे तो फिर किसके लिए करेंगे ।

2 टिप्‍पणियां:

रंजना ने कहा…

नेताजी की जय......विकास के विकास को प्रतिबद्ध नेताजी अपने विकास का विकास कर के ही रहेंगे......सही व्यंग्य किया है आपने....लाजवाब वाह...

Randhir Singh Suman ने कहा…

good