रविवार, 22 मार्च 2009

होता जो हनीमून नेपाल में..

हनीमून से मेरा परिचय उस समय ही हो गया था जब मेरी उम्र लगभग तीन या चार वर्ष की रही होगी. बात यूं हुई कि मेरे चाचा जी की शादी हुई थी और वे हनीमून के लिये कश्मीर जा रहे थे. उन दिनों कश्मीर हनीमून मनाने तथा फिल्मों की शूटिंग के काम आता था, आजकल आतंकवादियों की शूटिंग के काम आता है. हाँऽ तो मैं कह रहा था कि चाचा जी को कश्मीर जाते देख मैं भी जद पर अड़ गया कि मैं भी हनीमून पर जाऊंगा. मेरी मां ने मुझे समझाया कि बेटा ! अच्छे बच्चे हनीमून पर नहीं जाया करते. तब मेरे पिताजी मुझे बहलाने के लिए हनुमान जी के मन्दिर ले गये, हनुमान जी को भी हनीमून से परहेज था यह बात और थी कि उनके परम भक्त तथा उस मन्दिर के पुजारी और उनके बीच इस मामले में गहरे मतभेद थे और यह सब उन महिला भक्तिनों के कारण था जो उस मन्दिर में हनुमान जी के दर्शन करने आती थीं. जितनी देर वे हनुमान जी के दर्शन करतीं पुजारी जी उनके दर्शन कर लिया करते थे.
मैं कल्पना कर रहा हूं कि मैं भी हनीमून मनाने के लिए कश्मीर गया हूं. वहाँ आतंकवादियों ने मेरा अपहरण कर लिया है. आतंकवादी मुझे यातना दे रहे है . साला हिन्दोस्तानी , हमारे कश्मीर को हनीमून का अड्डा समझ रखा है ‘ जो देखो चला आ रहा है यहाँ हनीमून मनाने. तुम सब इसे नापाक बनाने पर तुले हो और हम इसे पाक बनाना चाहते हैं . लो हो गया हनीमून. कश्मीर में आतंकवाद का शायद एक कारण यह भी हो सकता है कि सब वहाँ हनीमून मनाने पहुंच जाते थे.
मैं सोचता हूं यदि मेरा हनीमून नेपाल में होता तो कैसा होता. जब लोग भारत तथा नेपाल में दो दो जगहों पर मना सकते हैं तो मैं क्यूं नहीं. सुना है नेपाल एक हिन्दू राष्ट्र है, चलो इससे कम से कम उन लोगों को तो जो भारत को भी हिन्दू राष्ट्र बनाने का सपना देख रहे हैं यह जान कर संतोष होगा कि अपने देश का एक नवयुवक पाश्चात्य देशों का मोह त्याग कर एक हिन्दू राष्ट्र में अपना हनीमून मना रहा है. एक सच्चे हिन्दू की यही पहचान है कि वह महत्वपूर्ण काम के क्षणों में भी अपने हिन्दुत्व को न भूले.
आप सब सोच रहे होंगे कि जिस प्रकार किसी घटना के घटते ही कुछ कवि अथवा लेखक उस पर कविता या लेख लिखने बैठ जाते है यह शख्स अभी तक उस भारतीय विमान अपहरण काण्ड पर क्यूं नहीं आ रहा है जिसे अपहरण करके नेपाल से कांधार ले जाया गया था. साथियों ! मामला वाकई बहुत गम्भीर था आखिर सवाल नेपाल से हनीमून मना कर वापस लौट रहे अपने देश के बेटे बहुओं की सुरक्षा का था जो विदेश की भूमि पर बंधक थे. हमारी उस समय सरकार भी बहुत चिंतित थी. सरकार अक्सर बहुओं के मामले में चिंतित हो जाया करती थी चाहे फिर वो विदेश की भूमि पर स्वदेशी बहू हो या स्वदेश की भूमि पर विदेशी बहू. चलिये अच्छा हुआ मामला रफा दफा हो गया . आतंकवादियों ने ३ के बदले १५६ को छोड़ दिया था हमारी सरकार ने तो २७६ सदस्यों के लिए ३७० को छोड़ दिया था.
वैसे हम जैसे मध्यमवर्गीय परिवार के लोग तो हवाई यात्रा से कहीं भी हनीमून पर जाने की सोच भी नहीं सकते आखिर सबकी बेटियों के बाप इतने सक्षम भी नहीं होते कि विवाह में दहेज के साथ वे हवाई जहाज का टिकट भी दे सकें. देखा जाए तो विमान अपहरण तथा विवाह में कोई विशेष अंतर नहीं है फर्क बस इतना है कि एक में नियंत्रण में लेने के बाद मांग की जाती है और दूसरे में मांग पूरी हो जाने के बाद नियंत्रण में लेते हैं.
मेरे एक मित्र ने सलाह दी कि तुम नेपाल रेल या कार से चले जाओ परन्तु उसमें भी एक समस्या थी कि रास्ते में कुछ भी हो सकता है. मेरे एक अन्य बुद्धिजीवी मित्र बोले कि तुम्हें हनीमून के लिए नेपाल जाने की क्या आवश्यकता है . समाज के कुछ ठेकेदारों ने तो अपने देश में ही हर जगह ऐसी व्यवस्था कर रखी है जहाँ कन्यायें आपको हनीमून के लिए आमंत्रण देतीं रहती हैं यहाँ तो हर शहर गॉव बस्ती में नेपाल बसा है . जब जी चाहे, जहाँ जी चाहे, मना लो हनीमून .

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